नही ये कोई गुनाह किसी भी अदालत में,
फिर ये दुनिया देती इस बात कि सज़ा क्यों है ??
कहते है मुहब्बत तो एक पाक रिश्ता है,
फिर न हो मुहब्बत मुझे उससे
दुनियावालो कि ऐसी रज़ा क्यों है ??
कि मुहब्बत तो अपनों से बेगाने हो गए
ए खुदा तेरे जहां में रिश्तो पे पहरा क्यों है ??
या रब मैंने ख्वाहिश तो न जताई उसे देखने कि
फिर ये चाँद आसमा पे ठहरा क्यों है ??
वो हर शाम कहती थी कि मै बस तेरे ही लिए बनी हूँ,
फिर आज किसी और के सर पे
उसके नाम का सेहरा क्यों
है ??
सब कहते है कि तेरी मुहब्बत में वो सिद्दत ना थी,
फिर उसकी हाथो कि मेहंदी का रंग इतना गहरा क्यों है ??
जो सोच रहे है कि वो खुश रह लेंगी मुझसे दूर जाकर,,
वो बस इतना बता दे कि ख़ुशी के इस पल में भी
उसकी आँखे नाम क्यों है, मायूस उसका चेहरा क्यों
है !!
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