“माँ” कहने को ये लफ्ज़ बहुत छोटा है पर इस लफ्ज़ की गहराई को दुनिया में कोई नाप नही सकता... हम दुनियां के लिए बेशक कुछ भी नहीं है, पर हर इन्सान अपनी मां के लिए सब कुछ होता है.... एक औरत जो अपनी जिन्दगी अपने घर और अपने बच्चे, अपने परिवार के लिए समर्पित कर दे और बदले में सिवा “प्यार” के कुछ भी ना मांगे वो र्सिर्फ एक मां हो सकती है... एक मां का ही दिल इतना बडा हो सकता है।
मुझे इस कलाम पर किसी की दाद की कोई तलब नही बस आप सब की दुवांए हो कि मेरी माई हमेशा सेहतमन्द और खुश रहें.... ये कविता मैं अपनी मां जिन्हे मैं प्यार से “माई” कहता हूँ उन्हें DEDICATE करता हूं, इस कविता में मेंरी जिन्दगी की कुछ सच्चाई शामिल है मै दुवा करता के दुनिया के हर मां का आंचल खुदा खुशियों से भर दे.......
“घुटनों पर रेंगते-रेंगते कब पैरों पर खडा हुआ...
तेरी ममता की छांव में ना जाने कब बडा हुआ...
सीधा-साधा भोला-भाला मै तेरे लिए सबसे अच्छा हूं...
कितना भी बडा हो जांउ मां मै आज भी तेरा बच्चा हूं....”
I LOVE YOU PYARI MAA
सुबह सुबह मैने सारी रात रोई हुई आंखों को छुपाया था…
पर मेरी मां को मेरी लाल आंखों ने सब समझाया था…
मां ने प्यार से बैठा के सीने से लगाया था…
“मै हूं ना” ये कह से फिर एक बार रूलाया था…
लिपट गया था सीने से मां के मैं फिर…
बडे प्यार से माँ ने सर मे हाथ धुमाया था...
अब तो मां को छोड कर हर सक्श लगता मुझे पराया था...
गमो के भयानक सायों से मां की दुवाओं ने ही तो मुझको बचाया था...
दिल का दर्द कुछ कहे बिना जान लेती है...
मेरी खुशी के लिए वा हर बात मान लेती है...
याद है मुझको जब उस बेवफा के प्यार में मैने धोखा खाया था...
“वो भी किसी की बेटी है, उसकी भी कुछ मजबूरियां है” ये कह के मेरी मां ने मुझे समझाया था...
हर दर्द को सह कर खुश रहती है, बच्चों के लिए जो हर सितम सहती है...
घर में तंगी की वजह से बच्चों को खाना खिला कर “मुझे भूख नही है” ये कह कर खुद भूखी रहती है...
जो कुछ देकर कुछ पाने की चाह ना रखे...
बच्चों के लिए दुनिया कि दिल में परवाह ना रखे...
उसे खुदा की पाक पवि़त्र चाह कहतें है...
जो मर कर भी जिन्दगी दे मेरे दोस्त उस पाक सूरत को “मां” कहते है.....
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