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एक बच्चा हमेशा तारे गिनता रहता था।एक व्यक्ति ने कारण पूछा,तो बोला मैं गिनता हूँ कि मेरी तरह कितने और अनाथ हैं इस दुनिया में #Storyunder140
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वो मुस्कुराकर उसे देख लिया करता, वो भी जवाब मे चुपके से मुस्कुरादेती, पर दोनो ने कुछ कहा नही, प्यार मे अलफाजों की
क्या जरूरत #Storyunder140
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करवटों के सहारे रात गुजरती थी जिसकी, आँखों में आंसू लेकर उस लड़के ने ताउम्र इंतजार किया अपनी मोहब्बत का #Storyunder140
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शायद वे दोनों लाइब्रेरी में मिले थे,शायद लाल गुलाबों से होठों तक का व्यापार हुआ था,शायद प्यार हुआ था..शायद ही कुछ... #Storyunder140
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हाथ में बोतल लटकाए स्कूल से घर के लिए लौटता तो उसके पीछे- पीछे वो कुत्ता भी
चला आता. पूंछ हिलाता कुत्ता उसके दांए-बाएं चलता रहता.. वो भी मस्ती में अपना रास्ता
नापता. कभी-कभी वो उस कुत्ते को बेवजह एक लात भी जमा देता. जिस दिन कुत्ता उसके पास
नहीं आता तो पुचकार कर उसे लात जमाने के लिए बुला लेता. लात लगने के बाद कुत्ता कांय-कांय
करता तो ना जाने उसे क्या मज़ा आता. फिर उसे इस हिंसा में एक अजीब सा आनंद आने लगा.
एक दिन उसे वो कुत्ता रास्ते में नहीं दिखा.. अगले दो दिन तक भी नहीं मिला. वो उसे
लात मारने के लिए परेशान था. संयोग से क्लास में टीचर ने कुत्ते की एक कहानी सुनाई.
उसे अब अपना कुत्ता याद आने लगा. वो बेचैन था. लात मारने का मन था. घर लौटते हुए उसने
कुत्ते को खोजना शुरू किया तो कुत्ते ही नहीं दिखे. रास्ते में पान वाले से पूछा तो
पता चला कि म्यूनिसिप्लिटी वाले सभी को गाड़ी में बंद करके बड़े मैदान ले गए. वो पैदल
ही बड़े मैदान के लिए चल पड़ा. मैदान पहुंचा तो देखा एक कोने में बड़े से दो पिंजरों
में ढेरों कुत्ते भौंक रहे थे. वो अपना कुत्ता खोजते हुए एक पिंजरे के पास पहुंचा.
पाया कि वही कुत्ता उसके पास आने के लिए मचल रहा था. उसने देखा वहां कोई नहीं था. पिंजरे
के पास जा कर थोड़ी मशक्कत की तो कुंडी भी खुल गई. दरवाज़ा खुलते ही बीसियों कुत्ते
कमान से तीर की तरह छूट कर भागे. उसके वाला मगर कहीं नहीं भागा.. वो पूंछ हिलाता हुआ
उससे लात खाने के लिए पास चला आया.. मगर वो ना जाने क्यों आज लात मारने के मूड में
नहीं था. प्यार से उसकी गरदन पर हाथ फेर रहा था.
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बाज़ार सजा था। धूप भी खूब तेज़ थी।चूंकि भीड़ बहुत नहीं थी इसलिए ज़्यादातर दुकानदार
सुस्ता रहे थे।इसी बीच सड़क पर एक आदमी चला जा रहा था. अचानक उसके एक पैर में दूसरा
पैर उलझा और वो गिर पड़ा। बेचार ने तेजी से इधर-उधर देखा और संभल कर उठ खड़ा हुआ। लोग
उसी की तरफ देख रहे थे। हाथ झाड़कर वो आगे बढ़ा ही था कि अचानक फिर से वही हुआ। दूसरा
पैर पहले में अटका और वो वहीं ढेर हो गया। इस बार पूरे बाज़ार में ज़ोर का ठहाका गूंजा।
खुद को बेइज़्ज़त सा महसूस कर वो बेचारा इस बार हौले से खड़ा हुआ। आस्तीन से माथा पोंछा
और ज्यों ही आगे बढ़ा कि फिर....
किसी ने हंसते हुए पूछा- अबे कौन है ये... इसके दोनों पैरों की ही आपस में नहीं
बन रही मियां..
मैंने कहा- तुम्हारा ही मुल्क है.. गौर से तो देखो...
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नीम का पेड़
पिताजी ज़िंदा थे तब तक वो उस नीम के पेड़ को हाथ भी नहीं लगा सका था. गाड़ी पेड़
की वजह से अहाते में ठीक से खड़ी नहीं हो पाती थी. हजार तर्क दे कर वो हार गया कि नीम
के कटने के बाद अहाते में थोड़ी जगह निकल आएगी. गाड़ी भी ठीक से खड़ी हो पाएगी. नीम
से टूटे पत्तों को रोज़-रोज़ साफ करने की मेहनत भी बचेगी. कोई तर्क हो मगर पिताजी के
लिए वो नीम नहीं बल्कि हमउम्र साथी था जिसकी रक्षा करना उनका फर्ज़ जैसा कुछ हो गया
था. रोज नई वजह लाता पर पिताजी टस से मस नहीं होते थे. वो पिताजी को बहुत चाहता था
लेकिन उनके अड़ियल रुख से बहुत चिढ़ता था. हर रात पत्नी से शिकायत करता कि गाड़ी ठीक
से अहाते में खड़ी नहीं हो पाती. बेकार में ही नीम ने जगह घेरी हुई है. फिर एक दिन
पिताजी अहाते में ही घूमते हुए गश खाकर गिर पड़े. नीम के सामने ही उनकी जान चली गई.
ठीक तेरह दिन बाद ऐसा अंधड़ चला कि नीम टूटकर गिर गया. उसने किसी को बुलाकर ठूंठ तक
कटवा दिया. अब जगह थी. गाड़ी ठीक से खड़ी होती थी. कभी -कभी पिताजी बहुत याद आते थे.
मां उसे पैदा करते ही चल बसी थी तब से पिताजी ने ही तो पाला था. यूं ही 20 साल गुज़र गए.. अब पिताजी की याद रोज आने लगी. एक सुबह पत्नी ने देखा कि वो अहाते
में मिट्टी खोद रहा है. करीब गई तो देखा वो नीम बो रहा था.
( संदर्भ से अलग, प्रसंग से जुदा)
-NITIN
THAKUR IBN7
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वो चिट्ठियां जिनके पते नहीं...
कुछ चिट्ठियां कभी सही पते पर नहीं पहुंच पातीं। वो
भटकने के लिए अभिशप्त होती हैं। मुमकिन है कि देर-सवेर कभी सही चौखट मयस्सर हो भी जाती
हो मगर चिट्ठी का संबंध प्रासंगिकता से होता है। अगर लेट हो गई तो फिर उसकी कीमत घट
जाती है...कई बार तो खत्म हो जाती है। पिछले दिनों एक ऐसी ही चिट्ठी मिली। मंजिल से
दूर और वक्त से छिटकी हुई। मैं नहीं जानता कि वो मुझे जहां मिली वहां तक पहुंची कैसे।
जुबान होती तो शायद बोलकर बताती। अब तो उसे उलट-पुलटकर बस अंदाजा लगा सकते हैं सो मेरे
साथी और मैं लगाते रहते हैं। मेरा दिल है कि आपको उसके बारे में बताऊं।
पिछले शनिवार की बात है। मुंबई में घूमते-घामते एक पुरानी
किताबों की दुकान पर पहुंचे। ना जाने कहां-कहां से पुरानी किताबें वहां शरण पाती हैं
और फिर एकाध दिन सुस्ताने के बाद किसी ना किसी के हाथ बिक जाती हैं। हमारे हाथ भी एक
किताब लगी। किताब के कवर पेज पर अभिषेक बच्चन थे। जाहिर है कि किताब फिल्मों पर आधारित
थी। विषयवस्तु जानने की इच्छा में किताब को उलटा-पलटा। इसी देखादेखी में पाया कि एक
गुलाबी लिफाफा दो पन्नों के बीच चिपका है। प्यार-सा छोटा लिफाफा बंद नहीं था। एक चिट्ठी
उसमें से बाहर झांक रही थी।
यही है वो किताब जिसमें सौमित्रा की चिट्ठी मिली।
9 साल पहले बंगाल के मालदा से लिखी गई वो चिट्ठी एक रिटायर्ड
रेलवे कर्मचारी की बेटी सौमित्रा ने लिखी थी। चिट्ठी लिखने के तरीके से मालूम पड़ता
है कि साढ़े 17 साल की सौमित्रा जवान होती सपनों से भरपूर जिंदादिल
लड़की है। टूटी फूटी अंग्रेजी में सौमित्रा ने 25 मार्च 2006 को वो पाती अभिषेक बच्चन को लिखी है। हम सबको याद है
उस दौर में अभिषेक दर्शकों की तरफ से अस्वीकार्य किए जाने के बाद सफल कम बैक कर रहे
थे। उनकी ‘युवा’, ‘बंटी और बबली’ और ‘सरकार’ आ चुकी थी जबकि ‘कभी अलविदा ना कहना’ का इंतज़ार था। सौमित्रा अभिषेक को बेहद प्यार करने का दावा करने के साथ शादी करने
की जल्दी में है। इसके पीछे एक वजह वो जतिंद्र बनर्जी भी है जिसे सौमित्रा के पिता
उसके लिए पसंद कर चुके हैं।
जतिंद्र भारी मूंछे रखने वाला दूधिया है। सौमित्रा को
लगता है कि वो उसे रेपिस्ट की तरह घूरता है। उसे अभिषेक की ’ब्लफमास्टर’ सबसे ज्यादा पसंद है जिसे उसने चिट्ठी लिखने तक 35 बार देखा है और गोल्डन जुबली का वादा है। सौमित्रा को ‘वन लव’ गाना बहुत पसंद आया मगर वो ये नहीं समझ पा रही कि मुंबई की ‘बेशर्म’ और ‘संस्कारहीन’ लड़कियां अभिषेक के पीछे क्यों पड़ी रहती हैं। ऊपर से वो इतने छोटे कपड़े पहनती
हैं कि सौमित्रा को उन्हें टीवी पर देखकर भी शर्म आती है। सौमित्रा अभिषेक को रानी
मुखर्जी और ‘ओशोजा’ रॉय से शादी ना करने के लिए भी मना रही है। उसका मानना है कि रानी बंगाली होने
के नाते कुछ ठीक तो है मगर वो खुद उससे काफी बेहतर है। खत के आखिर में वो अभिषेक को
ये भी बताती है कि वो अपने दिल की बातें खून से लिखना चाहती थी मगर क्या करे.. उसे
सुई से डर लगता है।
लिफाफे पर पता था- Abisek Bochchon, Film
Star, Jalsa Juhu Mumbai । एक कोने में तीर से दिल छिदा
था और आई लव यू भी लिखा था।
मैं जहां खड़ा होकर उस चिट्ठी को पढ़ रहा था ‘जलसा’ वहां से तकरीबन 8 किलोमीटर दूर है। ये भी जानता
था कि दरअसल वो दूरी 8 किलोमीटर से बहुत ज़्यादा है।
ना होती तो वो चिट्ठी 9 साल तक ना भटकती रहती। फिर याद
आया 90 के दशक में दूरदर्शन पर आया एक धारावाहिक जिसमें एक डाकिया कुछ चिट्ठियां पते
पर पहुंचाए बिना मर जाता है। उसका बेटा 20 साल बाद उन सभी चिट्ठियों को उनके सही पतों तक पहुंचाता है लेकिन तब तक वक्त बहुत
आगे निकल चुका होता है। हर चिट्ठी के पहुंचने के बाद एक अलग ही कहानी उपजती है। इसी
तरह सौमित्रा की चिट्ठी को मालदा से चले 9 साल बीत गए हैं। नहीं मालूम कि उस उत्सुक सी लड़की का क्या हुआ। मन है कि मालूम
करूं। मूंछों वाले जतिंद्र से वो बच भी सकी या फिर अब वही उसका ‘अभिषेक बच्चन’ है।
(पहचान छिपाने के लिए चिट्ठी के पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं)
-NITIN
THAKUR IBN7
Thanks For Reading....
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