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> NEW (update - 23/10/2015 01:01 AM India Standard Time)
> शहर में वो नया-नया आया था। एक भली सी शहरी लड़की को दिल भी दे बैठा। किस्मत साथ थी तो कहानी मुलाकातों तक बढ़ चली। दोनों ही अक्सर खाने-पीने साथ जाते। उन्हें साउथ इंडियन बेहद पसंद था। उस बेचारे को छुरी-कांटों से खाने में बहुत उलझन होती थी। इस्तेमाल करने नहीं आते थे तो संकोच भी होता था लेकिन अपनी बनावटी कस्बाई हनक में शर्म छिपाता था। अक्सर तन कर कहता- हम तो ऐसे ही हैं। लड़की बेचारी बिना छुरी-कांटे के खा नहीं पाती थी। बहरहाल प्रेमिका की सोहबत में आखिर कब तक अकड़ा रहता सो छुरी-कांटे से खाने की ट्रेनिंग लेने लगा। दोनों साथ घूमते-फिरते.. फिर भूख लगने पर शहर के अच्छे रेस्तरां में जाया करते। कोने की टेबल पर बैठ लड़की छुरी-चम्मच से झटपट डोसे का पोस्टमॉर्टम जैसा कर देती.. वो उसे हौले-हौले फॉलो करता। इस दौरान लड़के की कोशिश रहती कि उसकी कवायद देख कोई पहचान ना ले कि उसे छुरी-कांटे का इस्तेमाल नहीं आता। एक दिन यही सब करते-करते कांटा हाथ से छूट नीचे जा गिरा। शांत सी दोपहर में सबका ध्यान दो पल के लिए उनकी तरफ चला गया। काफी देर तक वो झेंप में यूं ही बैठा रहा। उस दिन के बाद उसने फिर कभी छुरी- कांटे नहीं उठाए। रेस्तरां तो दोनों अब भी जाते हैं... मालूम चला है कि अब लड़की हाथों से डोसा खाती है....
> शाम की टहनी पे आ बैठा है घना अँधियारा...रौशनी नए घोसले की तलाश में दूर उड़ चली है....
> तुम्हारा मुझ से दूर रहना मुझे चिढ़चिढ़ा बना देता है...फिर तुम जब लौटती हो तो मेरी ये चिढ़चिढ़ाहट मुझे तुमसे दूर कर देती है | बेहद प्रेम भी दूर होने का कारण बन जाता है कभी कभी | पर क्या करूं ऐसा प्रेम मेरी कमज़ोरी है | फैसला तुम्हारा है | मुझे तो सहने की आदत है |
नोट - ये बिल्कुल काल्पनिक नही है | और तुम अच्छे से ये जानती हो |
> अलविदा >>
जा रहा हूं...
बहुत दूर...
तुम्हारी सोच की हदों से...
तुम्हारे प्रेम की सरहदों से दूर...
मुझे लग रहा है तुम पर
हक्क बहुत ज़्यादा जता लिया...
प्रेम का नाम दे कर तुम्हे...
बहुत सता लिया...
तुमने उफ़्फ तक ना की...
मेरी हर बात मान ली...
पर अब मुझसे ये सब और ना होगा...
तुम्हे अपने काम भी ज़रूरी हैं...
मेरी सिर्फ तुम ज़रूरत हो...
मैं बदल ना पऊंगा ख़ुद को...
अच्छा है के खुद.चला जाऊं..
फिर लौट कर ना आऊं...
हो सकता है लिखते लिखते
तुम्हारी याद में कभी मैं
ख़ुद याद बन जाऊं...
उदासियों के जंगल में
इतना दूर निकल जाऊं...
के चाह कर भी लौट ना पाऊं...
पर तुम नही रोना...
अपना धैर्य नही खोना...
तुम्हे बेहतर ज़िंदगी मिलेगी...
जहाँ मुझ सा कोई ना होगा...
अपने डर की वजह से
तुम्हे दौड़ने से रोकने वाला...
हर बात जो गलत सी लगे
उस पर टोकने वाला...
मलाल मत करना...
जो हुआ वो मेरी मर्ज़ी थी...
समझना ये सब ख़ुदगर्ज़ी थी...
अच्छा तो विदा लेता हूं...
नई ज़िंदगी की तुम्हे शुभकामनाऐं देता हूं...
इंतज़ार मेरा मत करना...
वक्त अपना बेकार मत करना...
मै अब ना लौटूंगा...
> NEW (update - 09/10/2015 11:38 AM India Standard Time)
> ट्रेन आखिरी सीटी दे चुकी थी... गुलाब ना चाहते हुए भी अब खड़ी ही हो गई। उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ाने लगी मगर वो छोड़ने को तैयार नहीं था। बस हाथ पकड़े हंसता ही जा रहा था। इधर गुलाब की आंखों से मोती झर रहे थे.... कतार थी कि रुकती ही नहीं थी। वे सब देख रहा था लेकिन बेवजह हंसे जा रहा था। गुलाब ने फिर पूछा- तुम वैसे तो इतना हंसते नहीं थे लेकिन आज क्यों हंस रहे हो?
वो कुछ नहीं बोला..बस हंसने की बजाय मुस्कुराने लगा। दोनों जानते थे कि शायद आज के बाद एक-दूसरे को नहीं देख पाएंगे.... गुलाब ट्रेन में जाकर खिड़की के पास बैठ गई.. उसने फिर से हाथों में हाथ थाम लिया। ट्रेन चल पड़ी..वो भी ट्रेन के साथ आहिस्ता-आहिस्ता चलने लगा। गुलाब आंसू भरी आंखों से उसे एकटक देखे जा रही थी और वो हंस रहा था। गुलाब ने फिर पूछा- क्यों हंस रहे हो तुम..मत हंसो..
फिर हाथ छोड़ते हुए उसने इतना ही कहा- पता नहीं अब कभी हंस सकूंगा या नहीं.. आखिरी बार था गुलाब.. विदा मेरी जान....
वाकई उसके चेहरे पर अब मुस्कुराहट का कोई निशां भी नहीं था.. मानो वो सदियों से इस पत्थर जैसे चेहरे के साथ जी रहा हो.............
> ज़िगर का खून लाया हूँ तेरे सिंगार की खातिर....
हथेली पर रचा लेना ये महेकेगा हिना बन कर.......
#शायरि७
> तुमने और मैंने तय किया कि एक मिस्ड काॅल याद करने की और दो मिस्ड काॅल फोन पर बात करने के लिए उपलब्ध होने की. मेरे कान मोबाइल की रिंगटोन पर ही लगे रहते थे. पता नहीं क्यों बार-बार लगता था कि जैसे फोन बजा हो. मोबाइल फोन इतनी बार जेब से निकालता था कि परेशान होकर फिर दिनभर हाथ में ही रखने लगा. दोस्तों के बीच खड़ा रहता था लेकिन तुम्हारा फोन आते ही घर लौटने का बहाना करने लगता. घर पर फोन आता था तो एकांत में बात करने के लिए दोस्त के यहां जाने की बात कह कर निकल आता था. अक्सर रात को फोन पर तुमसे बात करते हुए ही आंख लगती थी. उंगलियों पर हिसाब भी करता था कि आज कितने घंटे बात करते रहे. उन दिनों कोई भी एक किस्सा बार- बार दोहराया जाता था, किसी की भी बुराई कर लेते थे, टीवी सीरियल्स तक पर चर्चा करते थे. मतलब तो बात होने से था ना, इससे थोड़े ही कि बात हुई क्या.
(पुरानी मुहब्बत को प्रेमी की श्रद्धांजलि)
> 12 बजते-बजते दुनिया सोती थी और तुम उसके बाद ही फोन पर फुसफुसा कर बातें कर पाती थी.. देखते ही देखते सैकेंड,मिनट,ऑवर्स हमारी बातों में ढल जाते थे। हर आधा-एक घंटे बाद मन में बेवजह ही सवाल उठता था कि ये वक्त चहलकदमी करने की बजाय भागा क्यों जा रहा है... ख्यालों के कितने ही महल बनाते थे ना हम दोनों..और फिर 4 बजने के साथ ही तुम हड़बड़ाहट में फोन रख देती थी। उफ्फ..तुम्हारे पिताजी का ड्यूटी टाइम भी ना....!!
(पुराने प्रेमी की शिकायतें- 2)
> किसी की नब्ज़ में दौड़ता हुआ लहू बनो....
> कोई नंबर मोबाइल स्क्रीन तक सिर्फ आता है, डायल नहीं होता....क्या किया जाए ?
> " शर्म नहीं आती? इतनी सी उम्र में चोरी करता है! चल तेरे बाप के पास"
" बाप नहीं है साहब"
#shortstory
> दोनों अलग हुए.... डायरियाँ भरी जाने लगी.... जिस पन्ने पर उनका नाम होता उसे मोड़ा जाने लगा, काश ! वे अपने मन को भी मोड़ पाते.....
> जैसा तुम चाहो............
> NEW (update - 30/09/2015 12:37 AM India Standard Time)
> जरूर उसके भीतर उगा होगा एक दरख़्त उदासियों का, इक सांवली-सी लड़की है जो हंसती बहुत है........
> वे दोनों हमसफ़र नहीं थे मगर दो कदम साथ-साथ चले थे......
> जिसे तुमने कहानी का अंत माना.. वो एक मोड़ भर था किस्से का..
(तुम्हारे लिए)
> बडी-बडी बातें नही, एक उम्मीद के हम मिलेंगे... आज नहीं तो कल... इस नहीं तो किसी और जन्म में.......
> तुम गली से निकलती और मैं पीछे से आता. कुछ दूर चलने के बाद तुम्हें बाइक पर बैठाकर हम रफ्तार पकड़ लेते. तब वो बाइक घोड़े से कम नहीं लगती थी. मैं पृथ्वीराज जैसे अहसास के साथ तुम्हें अपनी संयोगिता मानकर बाइक को रेस देता चलता. लगता था मानो जमाने को पीछे छोड़ दिया और अब कभी लौटना नहीं होगा. ज़रा शहर की जद से बाहर निकले तो खुद ही तुम्हारी बाहें पकड़कर अपनी कमर तक ले आता. तुम सकुचाती थी पर मैं मानता कहां था. हालांकि घर वापस लौटते हुए हम उतने ही उदास होते थे. उदासी जितनी गहराती थी तुम्हारी बाहों की कसावट उतनी ही बढ़ती जाती थी.
(कुछ कहानी कुछ किस्से)
> तुम्हारे लिए मेरा ये पागलपन.. किसी दिन जान ले लेगा मेरी.... और... ख़ामोश हो, खो जायेगी मोहब्बत वक़्त के अंधेरों में.....
> ये चांद सारी रात 'तुम्हें' मुझमें जगाए रखता है.....
> तुम्हें खुद में जीने की तमाम कोशिशों के बीच जिक्र-ए-खास में तुम्हारे नाम आ गया... अनजाने में वो आखिरी कसम टूट जाने का मलाल है......
> बड़ा सुकून मिलता है लफ़्ज़ों को कागज़ पर उतार कर ..
चीख़ भी लूं तो आवाज़ नहीं होती .....
> स्कूल की उस बेंच पर, मेरे नाम संग जो "नाम" खुरच आया था.. आज भी मौजूद है उस बेंच पर.. "ज़िन्दगी" में कहीं...
> 'उसकी' खामोशी में भी उर्दू की मिठास थी जिसे देर तक चखता रहा था वो । 'उसने' निगाहों से जो भी कहा 'उसके' दिल को छू गया ।
> पता है उस दिन जब तुम्हारा भाई वो पीला लिफाफा देकर गया था, अवाक् सा रह गया था, ऐसा लगा वो अपने साथ मेरी साँसे छीन ले गया.....
> किताब के पन्नों में रखी वो तस्वीर देखकर मासूमियत चेहरे की पढ़ता हूँ...
> लड़की की सच-झूठ की दुनिया की सरहदें मिटने लगी।वो 'वो' होने लगी थी जिसकी वो कहानियां लिखती...... एक लड़का किरदार होने लगा था....
> चोखट पर खड़ी हुई थी जिंदगी उसके, और पलंग पर थी मौत, और फिर उसने चलने की एक और नाकाम कोशिश की,पर हाँ कोशिश की.....
> वो कहती थी सुबह सबसे पहले मेरी आवाज सुनना है.....
उसकी शादी कही और हो गयी
मै वादे का पक्का था उसके मोहल्ले का दूधवाला बन गया....
> अंधेरी रात के पहलू में कैसी रौशनाई है....
किसी का दिल ज़रा धड़का, किसी को याद आई है......
> शाम से रास्ता तकता होगा... आज मेरा चांद खिड़की में अकेला होगा......
> वो कहती थी, सदा ऐसे ही क्या तुम मुझको चाहोगे....
के मैं इस में कमी बिकुल गवारा कर नहीं सकती.....
मै कहता था, महोब्बत क्या है ये तुमने सिखाया है....
मुझे तुमसे महोब्बत के सिवा कुछ भी नहीं आता...........
> बडे मासूम जज़्बों से...
वो अपने सोख हाथों पर...
वफा की सुर्ख मेंहदी से....
उसी का नाम लिखती है.......
जिसे वो प्यार करती है....
मगर वो ना समझ लड़की...
अभी तक ये नहीं समझी...
के सपने टूट जायें तो.....
बहुत बर्बाद करते है..........
ये उलझे रंग हाथों पर....
कभी ठहरा नहीं करते...
महोब्बत तो हकीकत है...
कोई सपना नहीं होता....
किसी का नाम लिखने से...
कोई अपना नहीं होता...........
> उसे इंतजार था.... बारिश आयी और सारी फसल चौपट कर गई। तीन महीने बाद वो फिर से बारिश का इंतजार करेगा......
> सीमेंट से सने हाथ पैर लिए, किसी के सपनों का घर बना कर लौट रहा वो मज़दूर.... ज़रा सी जगह ढूंढेगा फूटपाथ पर, और सो जाएगा....
> वह दूर परदेस में कमाता था।माँ की तबियत खराब होने का ख़त मिलते ही घर को चल पड़ा पर मिलना नीयत में ना था ।पेट की भूख ज़िंदगी भर का टीस दे गयी.....
> ४० मिनट का सफ़र था उसे ४० साल लग गए.... आज जब वो वापस आया तो उसका इंतज़ार करने वाला कोई नहीं था......
> उसे भूख लगी थी, तो उसने बच्चों की कसम खा ली....
> एक बुढापा ठेला खींच रहा था ताकि अंतेिम तीन रोटियां परोसती बहु को थाली सरकाना भार ना लगे...
> वो मुस्कुराकर उसे देख लिया करता, वो भी जवाब मे चुपके से मुस्कुरा देती.....
> खबर किसे होती जब वो खुद ही गुमशुम सा रहने लगा, एक बार मोहब्बत में दिल टूटना क्या होता है उसकी आँखों में पढ़ा था मैंने......
> करवटों के सहारे रात गुजरती थी जिसकी, आँखों में आंसू लेकर उस लड़के ने ताउम्र इंतजार किया अपनी मोहब्बत का.....
> वे दोनों नदी के दोनों किनारे जैसे थे,कहीं चलते-चलते एक दूजे की ओर मुड़ते तो थे पर मिलते कभी नहीं थे.......
> पुरानी नोटबुक के पिछले कुछ पन्ने.. गवाह हैं मेरी अधूरी कहानी के.. वो कहानी जो कभी मेरा सब कुछ थी.. कहानी जो सिर्फ मैं और मेरी नोटबुक जानती है.....
> वो मेहंदी लगवा रही थी. वो भी पास बैठा था.उसकी गोरी हथेलियों पर मेहंदी की कीप बेहद सावधानी से चल रही थी. आसपास भरे बाज़ार से दोनों ही बेसुध थे. हर कुछ देर बाद मेहंदी वाला हाथ उठाता और एक खूबसूरत अक्स उभरता. दोनों एक-दूसरे को देख मुस्कुराने लगते. हाथ आधा ही रचा था मगर वो मेहंदी से उठ रही खुशबू से मदहोश हुई जा रही थी. बच्चों की तरह किलकती हुई अपना हाथ उसे सुंघाने के लिए बार-बार आगे बढ़ाती. यही दोनों का खेल बन गया. अब दोनों वहां नहीं हैं.. कोई और यही खेल खेलता होगा....
> NEW (update - 17/09/2015 12:54 India Standard Time)
> शहर के आख़िरी छोर पर जो गंदा-सा तालाब है न, वहाँ कल रात नीलहंसों के एक जोड़े को देखा. शहर के सारे झील अब मगरमच्छों से भर गए हैं.....
> घाटे का सौदा करने वाले व्यापारी थे तुम....
तुमने मेरे सच्चे प्रेम का गला समाज की दुहाई देकर घोंटा था.....
> “नाराज़ नहीं हूँ और माफ़ी की आवश्यकता नहीं तुम्हें, मुझे कोई शिकायत नहीं तुमसे... तुम परेशान मत हो.. पिछली मुलाक़ात में तुममें बाक़ी बचा मेरा हर हिस्सा वापस ले आया हूँ... हाँ, अपने काजल से तुमने, मेरे कान के पीछे जो काला टीका लगाया था न बस उसे ही छोड़ आया हूँ... यूं तो अब उसकी ज़रूरत नहीं मुझे... इसलिए बस इतना करना कि साथ देखे गए बाक़ी सपनों को दफ़नाते वक़्त उसे भी मिट्टी में दफ़न कर देना...”
> सवाल ये नहीं कि हम एक साथ रहें। सवाल ये है कि मुझे मालूम रहे कि तुम सचमुच मुझसे प्रेम करते हो तो मैं सिर्फ इसी सहारे भी जी सकती हूँ। लड़की बोल रही थी लड़का सिर झुकाये बैठा था खामोशी के साथ....
#महोब्बत२०१५
> तुम्हे देखा...मेरी ऊंगलियों ने रचने का हुनर सीख लिया... तुम्हारी कर्ज़दार हैं ये... इन्हें थाम लो या जब कहोगे थम जायेंगी ये.....
> तुम्हारे चले जाने के बाद...तुम्हे सोचना....मानाे अपनी ही कब्र की दीवार से लगे बैठा हूं...
> वो खिलौने बेचने वाला जब शाम को घर जाता होगा ....
जाने अपने बच्चों के लिए क्या ले जाता होगा....
> अब कैसे कहूँ, हिचकी आती है तो पानी नहीं पीता...
तुम्हें याद करने का बहाना है.
जब आख़िरी आएगी, तब गंगाजल पिला देना........
> अगले ही पल मैं दरगाह के दर पे खड़ा था, जहां अपनी-अपनी मन्नतों में एक-दूसरे को बांध आए थे हम.. अब वहाँ से तुम्हें आज़ाद भी तो करना था न... मन्नत के रंगीन धागे को खोलते वक़्त पिछला सारा मंज़र निगाहों के सामने घूम रहा था... वो मंदिर भी जहां साल शुरू होने की दूसरी तारीख़ को साथ गए थे दोनों और जब मत्था टेका था तो अनजाने में ही पंडित ने दोनों को साथ ही सुखी रहने का आशीर्वाद दे दिया था..... ख़ैर, मैंने एक लंबी सांस भरी और धागा खोल तुम्हें आज़ाद किया.. हाँ, मगर ख़ुद को बंधा ही छोड़ दिया उस धागे में जिसे तुमने मेरे नाम से बांधा था.. उसे भी खोलूँगा तब, जब अपने आख़िरी वक़्त में तुमसे आख़िरी दफ़ा मिलने आऊंगा.....
> मेरे शब्दों में कैद हैं कागजों पर कई चेहरे......
> मेरी आँखों की सुर्खी देख कर कहने लगे हैं लोग,
"लगता है तेरा प्यार तुझे आजमाता बहुत है"....
(तुम्हारे लिए)
> कभी तो शायद ऐसा कुछ लिख पाऊंगा...बिल्कुल तुम्हारे जैसा...कि अशहार मेरे कोई पढ़ेगा तो लफ़्ज़ों से तुम छनोगी...
> तू मुझसे दूर कहाँ है, तू तो हर पल मेरे पास है.........
> रेल की सवारी, रिजर्वेशन वाला डब्बा, वो दोस्तों की जिद एक शायरी सुनाता है... सब उसको देखने लगते है.. वो बार-बार उसको देखती है...... गाड़ी आउट सिग्नल पर रुकी है.. लड़का खामोश बैठा है और लड़की को अब उतर जाना है........
> कभी याद आईने में, कभी याद सिरहाने... कितना असान है मुझे, इधर उधर करना....
" है , ना "
OLD...
> कोई पुछ रहा हे मुजसे मेरी जीन्दगी की कीमंत.... मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के से मुस्कुराना......
> कभी वो जागती थी रात भर मुझे msg करने के लिए...
> ना रोको मुझे दर्द लिखने से,
आज या दर्द रोयेगा या दर्द देने वाला......
> हकीकत में ये ख़ामोशी हमेशा चुप नही होती...
कभी तुम गौर से सुनना बहुत किस्से सुनती है...
> मोहब्बत में कभी जज़्बात का सौदा नहीं करते ......
> चांद हल्का सा झुका देखा है अभी // तुम यूं ही धीमे से मुस्कुराया करो.........
> पिघल-पिघलकर गले से उतरेगी आखिरी बूँद दर्द की जब मैं साँस की आखिरी गिरह को भी खोल दूँगा...
> तेरी यादों के जो आखिरी थे निशान,
दिल तड़पता रहा, हम मिटाते रहे...
ख़त लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में,
उसको पढते रहे और जलाते रहे....”
> तन्हाई की दीवारो पे घुटन का पर्दा झूल रहा है...
बेबसी की छत के नीचे,कोई किसी को भूल रहा है....
> “विदा होते-होते और विदा करते-करते काफी वक्त हो गया है लेकिन इससे उपजने वाले भावों से मुझे मुक्ति अभी तक नहीं मिली…..”
> मैंने दबी आवाज़ में पूछा - "मुहब्बत करने लगी हो?"
नज़रें झुका कर वो बोली थी - "बहुत"
> वो सभी लिखते हैं...इसलिए नहीं कि उन्हें कुछ पाना है...वो सब इसलिए लिखते हैं क्योंकि उन्होंने खोया है सब कुछ...
> इस इश्क़ का हिसाब उस दिन देना जब मेरी ज़िन्दगी मेरी मौत का मातम मनाएगी.......
> तुम्हारी मेहराबों पर हर शाम उड़ने वाली इन अबाबीलों से लेकर हर पहर तुम्हारे इन बहने वाले आंसुओं का ज़िम्मेवार मै ही हूं.. जानता हूं.............
> मुझे हवाओं से घूंघट उठाना नहीं आता, एक दफ़ा तेरे चेहरे से कुछ सरकाया था तो अब ये उम्र नशे मे ग़ुज़र रही है...
> जितना ही तुम ज़ख़्म कुरेदोगे, उतना ही लहू टपकाऊंगा।
> इश्क़ में अगर मौत नज़र आए तो क्या कीजिए ?
पास जाकर गले मिलिये और मुस्कुरा दीजिये.........
> कभी तो चाँद खिलेगा तेरी हथेली पर...
> जिसे ले गई अभी हवा, वो वरक़ था दिल की किताब का,
कहीँ आँसुओं से मिटा हुआ, कहीं, आँसुओं से लिखा हुआ....
> वही ख़त के जिसपे जगह-जगह, दो महकते होटों के चाँद थे,
किसी भूले बिसरे से ताक़ पर तहे-गर्द होगा दबा हुआ......
> तुम्हारे "कैसे हो" का कितना लंबा जवाब है मेरे पास..
> शब्दों को जोड़-जोड़ के कुछ पंक्तियाँ काव्य की रचता गया... तुम क्या जानो प्रिय, मध्य इस सृजन के कितना टूटा हूँ मैं...
> अगले जन्म में मै तुमसे फिर मिलूँगा...
किसी खेल में, या व्यापार में..
तब होगा प्रेम का हिसाब, मै गणित सीख लूँगा तब तक.........
> अब नहीं रखना चाहता याद अपने अतीत और गुजरे कल को....
पुन: तलाश करना चाहता हूँ वर्तमान मे अपनी पहचान बनाने के लिए एक नाम की...
हाँ... एक नाम की..........
> आसमा से जो टपकी हैं दो बूंदे... मुझे तेरे गीले बालों को झटकना याद आ गया...
> न मैं था... न मैं हूँ... न मैं रहूँगा... तुम्हारे बगैर........
> एक चाहने वाला ऐसा हो... जो बिलकुल मेरे जैसा हो...
> ख्वाबो का रंग... आसमां में... तुमसा.... बस तुमसा.. धडक रहा है.....
> रात के आईने में... कोई चाँद बनकर झांकता है ....
> इस धागे से क्यों बाँधना चाहती हो ? ताकि हमारी दोस्ती में एक धागे सी दूरी हमेशा रहे ? #लप्रेक
> तुम्हारा हाथ थामकर समाज की परम्पराओं
से बगावत कर बैठूं या
विदा होकर तुमसे… सारी उमर आंसुओ की व्यथा लिखते हम मैं और तुम ???
> ’चाँद’ मैं तू धरती है, मंज़िल मेरी...
तेरे ही परिधि पर घूमता रहता हूँ मैं....
> कभी रुमाल मांगा था उसने... चेहरे से बारिश की कुछ बूँदे पोंछने के लिए... वो मौसम अभी.. अलमारी.. में संभाल रखा है......
> कभी फुर्सत मिले तो सोचना जरूर,
एक लापरवाह लड़का क्यों तेरी परवाह करता था....
> ज़र्रे ज़र्रे से निकली थी अजब आवाज़ें...
सब से लड़ने के लिए इश्क अकेला निकला.....
> शादी जिस्म बेचने और खरीदने का वो पेशा है जिसे कानून और समाज की हिमायत हासिल है.
- बाज़ार
> कभी मेरी याद में आंशू आ जायें तो तुम रो लेना….
मिलना किस्मत में ना था अपने तो हम मिल ना सके…
जो किस्मत में है तुम्हारे तुम उसी के हो लेना…
> एक दम तन्हा हूं मैं, अकेला हूं, तुम बिन कुछ नहीं मैं…
> कभी तो शायद ऐसा कुछ लिख पाऊंगा कि जिससे पहचाना जाऊंगा और ये दुनिया मुझे याद रखेगी...
> बन्द कर लूं आंखे तो एक उसी का चेहरा मुझे नजर आता है...
मुझसे थोड़ा दूर वो गुजरा हुआ कल जाने दो मै सो जाउंगा....
> अभी तो मेरा जी भी नहीं भरा महोब्बत से, कैसे सो जाउं मै...
परवाने को शमा में थोड़ा और जल जाने दो मैं सो जाउंगा...
> आंशू आंखों से मेरे जाने कहां गुम हैं, कोई बता दे मुझे...
मै अभी पत्थर हूं, थोड़ा पिघल जाने दे सो जाउंगा........
> अभी तो पी भी नहीं शराब, मगर नशा सा हो रहा है...
बेहाश हूं मै अभी, थोड़ा संभल जाने दो सो जाउंगा.....
> अभी बाकी है रात, और थोड़ा ढल जाने दो मै सो जाउंगा...
अभी बाकी है दर्द, कागज पर निकल जाने दो मै सो जाउंगा...
> डायरी के बारहवें पन्ने पर एक उदास सी ग़ज़ल है .... कभी कभी हाथों में ले कर , उसे हँसाने की कोशिश करता हूँ ....
> इस शाम भी तेरी याद रही, ये शाम बड़ी गुलज़ार रही....
अब सुबह का रोना कौन कहे, जब सुबह वो होगी देखेंगे....
> "वो देख रही है तुझको" ->>
बस इतना कह कर मुझे सातवे आसमान की उड़ान पर भेजने वाले दोस्तों को भी मेरा सलाम... उन सबको भी भगवान खुश रखे.......
> लिखो उस पहर जब शब्द सबसे बेहतर तरीके से आवारा हों........
> जिंदगी के जिन रास्तों पर तलुवे मेरे छिल रहे है...
उसी रास्ते पर पिताजी कईयों मील गये थे............
> जब वो साथ था तो हमारे लिए बकवास था...
आज वो दुर है,, तो हमारे लिए वो ही कोहिनुर है....
> कोई सजाता होगा खुद को दुल्हन की तरह आज...
कोई काजल, कोई कंगना, कोई दुपट्टा तड़प रहा होगा....
तेरी यादें, तेरी बांते, तेरी उम्मीद पे घायल...
आज कोई तश्वीर से बे तहाशा लिपट रहा होगा......
> गम मे वो शराब पीते है…
और वो पीती है अश्क अपने…!!
> मेहँदी वाले हाथों के कन्धों से
दुपट्टा सरकना,
आफतें क्या क्या..!!
> शायर बनना बहुत आसान है...
बस एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल डिग्री चाहिए...
> 11/- रूपये की नींद देगा कोई ?
> यदि आपको लगता है, आप जिसे इश्क़ करते हो वो भी आपके मजे ना लेकर आपसे इश्क़ ही करेगा तो सच्ची पुत्तर जी, आप न वड्डे वाले क्यूट हो
> चंद रातों के खुवाब
उम्र भर की नींद मांगते है।।
> चुप चाप सा ये कमरा मेरा
और रोशन ताक
जहाँ बल्ब जल रहे है
खामोश
बेजुबान
जो बस जलना जानते है
किसी की याद में...!!!
> यादों की अलमारी में देखा, वहां मुहब्बत फटेहाल लटक रही है
> एक सपने के टूटकर चकनाचूर हो जाने के बाद..
दूसरा सपना देखने के हौसले को 'ज़िंदगी' कहते हैं..
> वो भी कैसा वक़्त था क्या हसीन घड़ी थी ...
शरमाई सी मुस्कुरा रही तुम मेरे सामने खड़ी थी ....
> जरा धीरे से.. धडकने कोई सुन रहा होगा....
> चलते हैं महादेव ....
”चलो चलते है ... फिर मुलाकात होगी कभी किसी मोड पर ....
अब तक के सफर के लिए शुक्रिया ....”
> “कम–से–कम बैग के नीचे से मेरा हाथ तो थामे रह सकते थे .. बुजदिल ...
तुम मेरी कम दुनिया की फ़िक्र ज्यादा करते हो” ....
#गाँवकागवांर
> तुम्हारी तस्वीर, मेरे फ़ोन के म्यूजिक प्लेयर में ठसे Sad Song ... और कुछ हमारे बातचीत के Audio ....
रातें अब यूं ही गुजरती हैं .........
> औरत 'प्रेम' तो ले आती है मगर उस प्रेम पर 'विश्वास' मर्द को ही लाना होता है और 'विश्वास' के अभाव में 'प्रेम' कभी सफल नहीं हो सकता ....
> मन में आता है के सब कुछ छोड़ कर सन्यासी हो जाऊ ... फिर उस
लड़की का ख़याल आ जाता ह जो मुझे पति रूप में पाने के लिए 16 सोमवार का व्रत कर रही होगी ...
> हमसफ़र की तरह ज़िन्दगी के सफ़र में .....
"मेरा साथ देने का" उसने वादा किया था ......
- to be continued...
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