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तुम्हारा फ़ोन आया है....
अजब सी ऊब शामिल हो गयी है रोज़ जीने में....
पलों को दिन में, दिन को काट कर जीना महीने में....
महज मायूसियाँ जगती हैं अब कैसी भी आहट पर....
हज़ारों उलझनों के घोंसले लटके हैं चैखट पर....
अचानक सब की सब ये चुप्पियाँ इक साथ पिघली हैं....
उम्मीदें सब सिमट कर हाथ बन जाने को मचली हैं....
मेरे कमरे के सन्नाटे ने अंगड़ाई सी तोड़ी है....
मेरी ख़ामोशियों ने एक नग़मा गुनगुनाया है....
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है.....
सती का चैतरा दिख जाए जैसे रूप-बाड़ी में.....
कि जैसे छठ के मौके पर जगह मिल जाए गाड़ी में....
मेरी आवाज़ से जागे तुम्हारे बाम-ओ-दर जैसे...
ये नामुमकिन सी हसरत है, ख़्याली है, मगर जैसे....
बड़ी नाकामियों के बाद हिम्मत की लहर जैसे...
बड़ी बेचैनियों के बाद राहत का पहर जैसे....
बड़ी ग़ुमनामियों के बाद शोहरत की मेहर जैसे.....
सुबह और शाम को साधे हुए इक दोपहर जैसे....
बड़े उन्वान को बाँधे हुए छोटी बहर जैसे....
नई दुल्हन के शरमाते हुए शाम-ओ-सहर जैसे....
हथेली पर रची मेहँदी अचानक मुस्कुराई है....
मेरी आँखों में आँसू का सितारा जगमगाया है....
तुम्हारा फ़ोन आया है, तुम्हारा फ़ोन आया है......
Dr Kumar Vishwas New Kavita - Tumhara Phone Aaya hai
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